किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी,
झूम कर आई घटा, टूट के बरसा पानी
कोई मतवाली घटा थी, के जवानी की उमंग,
जी बहा ले गया बरसात का पहला पानी
टिकटिकी बांधे वोह फिरते है में इस फ़िक्र में हूँ,
कही खाने लगे ना चक्कर ये घहेरा पानी
बात करने में वोह उन आँखों से अमृत टपका,
आरजू देखते ही मुहँ में भर आया पानी.
रो लिया फूट के, सीने में जलन अब क्यूँ हो,
आग पिघला के निकला है ये जलता पानी
ये पसीना वही आंसूं हैं, जो पी जाते थे तुम,
"आरजू "लो वोह खुला भेद वोह फुटा पानी
रचनाकार: आरजू लखनवी
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
ReplyDeleteसंजयजी ये मैंने नहीं लिखी है
ReplyDeleteजगजीत सिंहजी ने ये ग़ज़ल गायी है
इस ब्लॉग में लिखी हुई एक भी ग़जल मेरी नहीं है.
धन्यवाद आप मेरा ब्लॉग पढ़ रहे है.