मैं भुल जाऊ तुम्हे अब यही मुनासिब है


मैं भुल जाऊ तुम्हे अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भुलू?

के तुम तो फिर भी हकीक़त हो कोई ख्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है ...क्या कहूँ तुमसे ..
भुला सका न ये वो सिलसिला जो था ही नहीं

वो इक खयाल जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो इक बात जो में कह नहीं सका तुमसे !
वो इक रप्त्त जो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वोह सब जो कभी हुआ ही नहीं

अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए ...
तुम्हे भुला न भी चाहू तो किस तरह भुलू

Comments

Post a Comment

Popular Posts