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Showing posts from June, 2010

जाग के काटी सारी रैना

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो?

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था

बेबसी जुर्म है हौसला जुर्म है........

मैं उतना याद आऊँगा मुझे जितना भुलाओगे...

उसके आ जाने की उम्मीदे लिए

जिस की आँखों में कटी थी सदियाँ

बदला ना अपने आप को जो थे वही रहे

तेरी आँखों में हमने क्या देखा...

जब किसी से कोई गीला रखना

किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी

ना मोहब्बत ना दोस्ती के लिए

शाम से आँख में नमी सी है

तुम बैठे हो लेकिन जाते देख रहा हूँ...... :(

मैं भुल जाऊ तुम्हे अब यही मुनासिब है

न जाने क्या था, जो कहना था आज मिल के तुझे