ये भी क्या एहसान कम हैं


ये भी क्या एहसान कम हैं देखिये ना आप का
हो रहा है हर तरफ़ चर्चा हमारा आप का

चाँद में तो दाग़ है पर आप में वो भी नहीं
चौदहवीं के चाँद से बढ़के है चेहरा आप का

इश्क़ में ऐसे भी हम डूबे हुए हैं आप के
अपने चेहरे पे सदा होता हैं धोका आप का

चाँद सूरज धूप सुबह कह्कशाँ तारे शमा
हर उजाले ने चुराया है उजाला आप का





(कह्कशाँ = आकाश गंगा)

रचनाकार:-वाजिदा तबस्सुम

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